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वैश्विक परिदृश्य में हिंदी की प्रासंगिकता और स्वीकार्यता

साल 1947 में जब भारत आजाद हुआ तो हमारे समक्ष भाषा को लेकर सबसे बड़ा सवाल था, क्योंकि भारत में सैकड़ों भाषाएं और बोलियां बोली जाती है। हालाँकि, संविधान सभा ने अपना “26 नवंबर 1949” को संविधान के अंतिम प्रारूप को मंजूरी दे दी। महत्वपूर्ण रूप से, 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने एक मत से निर्णय लिया कि हिंदी ही भारत की राजभाषा होगी। अतः हिंदी हमारी मातृभाषा है और इसे देश का प्रत्येक नागरिक अपने सम्मान के लिए बोलता है।

दुर्भाग्यवश, आधुनिक समय में जिसमें कि तकनीकी विकास और आर्थिक उन्नति के द्वारा हिंदी की प्रासंगिकता और स्वीकार्यता लोगों में कम होती जा रही है। समकालीन परिदृश्य में, कुछ शोध अध्ययन यह भी इंगित करता है कि ‘इंग्लिश/अंग्रेजी’ को लोगों द्वारा, ‘सभी क्षेत्रों’ में सफलता की कुंजी माना जा रहा है परन्तु हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि “मातृभाषा के द्वारा ज्ञान प्राप्त करके भी सफलता को अर्जित किया जा सकता है”। अतः किसी भी देश के लिए उसकी भाषा और संस्कृति बहुत महत्वपूर्ण और निर्णायक भूमिका निभाती है। 21वीं सदी में जैसे-जैसे हम आगे बढ़ रहे हैं, वैसे ही हिंदी के इस्तेमाल और प्रासंगिकता को बताने और इस भाषा को आगे प्रोत्साहित करने वाले भी दिन-प्रतिदिन बढ़ रहे हैं।

अब कई वैश्विक/ग्लोबल कंपनियां हिंदी के महत्व को जानते हुए, इसकी ऑडियंस (दर्शक) पर अपना ध्यान केंद्रित करने लगी है। कंपनियां ही क्यों आजकल तो लोग भी अपने मोबाइल में अंग्रेजी की जगह हिंदी भाषा का प्रयोग करने लगे हैं। ‘सोशल मीडिया’ पर भी अब ज्यादातर हिंदी भाषा का ही चयन किया जाता है। इसके साथ-साथ मीडिया जगत में भी हिंदी की प्रसंगिगता दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। हिंदी की वर्तमान स्थिति पर हुए सर्वे में एक तथ्य सामने आया कि सभी विषम परिस्थितियों के बावजूद भी हिंदी की स्वीकार्यता बढ़ी है।

स्वीकार्यता बढ़ने के साथ-साथ इसके व्यावहारिक पक्ष पर भी लोगों ने खुलकर राय-विचार व्यक्त की, शोधकर्ताओं का मानना है कि हिंदी के अखबारों में अंग्रेजी के प्रयोग का जो प्रचलन बढ़ रहा है वह उचित नहीं है लेकिन ऐसे लोगों की भी तादाद कम नहीं है जो भाषा के प्रवाह और सरलता के लिए इस तरह के प्रयोग को सही मानते हैं। जो भी हो दैनिक जीवन में व्यस्तता के कारण हिंदी की किताबें पढ़ने का अवसर भले ही न मिलता हो लेकिन “आधुनिक संचार माध्यमों” ने हिंदी भाषा को एक लोकप्रिय भाषा तो बना ही दिया है।

आज विश्व में सबसे ज्यादा पढ़े जानेवाले समाचार पत्रों में आधे से ज्यादा हिंदी के हैं। इसका अर्थ यही है कि पढ़ा-लिखा वर्ग भी हिंदी के महत्त्व को समझ रहा है। शोधकर्ताओं के अनुसार, वस्तुस्थिति यह है कि आज भारतीय उपमहाद्वीप ही नहीं बल्कि दक्षिण पूर्व एशिया, मॉरीशस, चीन, जापान, कोरिया, मध्य एशिया, खाडी देशों, अफ्रीका, यूरोप, कनाडा तथा अमेरिका तक हिंदी कार्यक्रम उपग्रह चैनलों के जरिए प्रसारित हो रहे हैं और भारी तादाद में उन्हें दर्शक भी मिल रहे हैं। आज ‘मॉरीशस’ में हिंदी सात चैनलों के माध्यम से धूम मचाए हुए है।

विगत कुछ वर्षों में एफ.एम. रेडियो के विकास से हिंदी कार्यक्रमों का नया श्रोता वर्ग पैदा हो गया है। इस प्रकार हिंदी अब नई प्रौद्योगिकी के रथ पर आरूढ होकर विश्वव्यापी बन रही है। उसे ई-मेल, ई-कॉमर्स, ई-बुक, इंटरनेट, एस.एम.एस. एवं वेब जगत में बडी सहजता से पाया जा सकता है। इंटरनेट जैसे वैश्विक माध्यम के कारण हिंदी के अखबार एवं पत्रिकाएँ दूसरे देशों में भी विविध साइट्स पर उपलब्ध है, जोकि हिंदी भाषा की वैश्विक लोकप्रियता को दर्शाती है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अनुसार, हिंदी भाषा की सरलता, सहजता और शालीनता अभिव्यक्ति को सार्थकता प्रदान करती है। हिंदी ने इन पहलुओं को खूबसूरती से समाहित किया है। “भारत विभिन्न भाषाओं का देश है और हर भाषा का अपना महत्व है परंतु पूरे देश की एक भाषा होना अत्यंत आवश्यक है जो विश्व में भारत की पहचान बने। आज देश को एकता की डोर में बांधने का काम अगर कोई एक भाषा कर सकती है तो वो सर्वाधिक बोले जाने वाली हिंदी भाषा ही है।”

केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के अनुसार, “आजादी से पहले जो भी आंदोलन हुए उनसे हिंदी भाषा को खासा प्रोत्साहन मिला था। आजादी की लड़ाई के दौरान कांग्रेस अधिवेशनों में विभिन्न राज्यों के और अलग-अलग भाषा संस्कृति वाले प्रतिनिधि भाग लेते थे। यहां वे सब तरह की जानकारी हिंदी में ही हांसिल करते थे। उसके बाद जब वे अपने-अपने इलाके में जाते तो बहुत सी बातें हिंदी में बताते थे। इससे भी हिंदी का प्रचार-प्रसार हुआ।” महात्मा गांधी कहते थे कि राष्ट्र भाषा के बिना राष्ट्र गूँगा है।

डॉ. राम मनोहर लोहिया कहते थे कि हिंदी के बिना लोकराज संभव नहीं है। शासन की भाषा अगर जनता न समझे तो उस लोकतंत्र का कोई फायदा नहीं है। उत्तर-पूर्व के राज्यों में अब केंद्र सरकार हिंदी सिखाने में मदद करेगी। केंद्रीय गृह मंत्री के मुताबिक, जब मैं वहां के मुख्यमंत्रियों से मिला, तो मुझे पता चला कि लोग वहां हिंदी सीखने के लिए प्राइवेट टयूशन लगा रहे हैं। वहां के लोगों की हिंदी के प्रति चाहत को देखकर यह फैसला लिया गया है कि अब उन्हें केंद्र सरकार हिंदी सिखाएगी। इसके लिए उन राज्यों को हर तरह की मदद दी जाएगी।

अतः किसी भी देश को आर्थिक रूप से सुदृढ़ होना है तो उन्हें अपने देश की संस्कृति और भाषा को प्रोत्साहित और उसकी पहचान बनाना होगा। प्रत्येक भारतीय को हिंदी भाषा और संस्कृति की समझ होनी चाहिए। क्योंकि यह प्राचीन काल से भारत के इतिहास और इसके भविष्य का निर्धारक तत्व रही है। मातृभाषा देश के सभी नागरिकों को एकता के सूत्र में बांधने का एक बहुत महत्वपूर्ण साधन है। देश के युवाओं को हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार हेतु लोगों को प्रत्साहित करना चाहिए। हालाँकि, हिंदी भाषा का बड़ा नुकसान विदेशी भाषाओं के कारण हुआ है, क्यूंकि भारतीय विदेशी भाषाओं में अवसर खोजने को ललायित है।

लेखक: त्रिलोक सिंह, स्नातकोत्तर, राजनीतिक विज्ञान, किरोड़ी मल कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय। सीईओ/संस्थापक, यूथ दर्पण (इंग्लिश मीडिया) और आईएसमाइंड.कॉम।

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