भारत और चीन के सैन्य प्रतिनिधियों ने पूर्वी लद्दाख में अपनी सीमाओं से सैनिकों और साजो-सामान को पीछे हटाने और तनाव घटाने पर लगभग 15 घंटों तक बातचीत की। बातचीत के दौरान भारतीय पक्ष ने पीएलए के सैनिकों को पेंगोंग झील और देपसांग क्षेत्र से पूरी तरह पीछे हटने के लिए कहा। यह बातचीत मंगलवार को दिन में 11.30 बजे शुरू हुई थी और देर रात दो बजे यानी बुधवार को खत्म हुई।
दोनों देशों के बीच लद्दाख सीमा पर कई स्थानों पर पिछले 10 सप्ताह से आमने-सामने की स्थिति बनी हुई है, जो अपने आप में अभूतपूर्व है।
बातचीत शुरू करने से पहले भारत का मुख्य उद्देश्य चीनी पीपल्स लिबरेशन आर्मी के टैंक, तोप और अतिरिक्त बलों को पेंगोंग झील और देपसांग क्षेत्रों से हटाना था।
इसके पहले छह जून को 14 कॉर्प्स कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल हरिंदर सिंह और साउथ शिनजियांग मिल्रिटी डिस्ट्रिक्ट प्रमुख मेजर जनरल लियु लिन के बीच पूर्वी लद्दाख मे चुशुल-मोल्दो सीमा पर्सनल मीटिंग पॉइंट हुई बैठक भी इसी तर्ज पर थी।
प्रतिनिधियों के बीच हुई यह चौथी बैठक है। दोनों पक्षों के बीच तीसरी बैठक करीब 12 घंटे तक जारी रही थी, जिसमें भारत ने पीएलए के सैनिकों को कड़ा संदेश दिया था।
दोनों देश सीमावर्ती क्षेत्रों में तनावपूर्ण स्थिति को कम करने के लिए सैन्य और कूटनीतिक बातचीत में लगे हुए हैं।
वहीं शुक्रवार को दोनों देशों के प्रतिनिधियों के बीच एक कूटनीतिक बैठक हुई थी। यह बैठक भारत-चीन वर्किं ग मेकेनिज्म फॉर कंसलटेशन एंड को-ऑर्डिनेशन ऑन इंडिया-चाइना बॉर्डर अफेयर्स (डब्ल्यूएमसीसी)की बैठक 10 जुलाई को हुई थी।
भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व विदेश मंत्रालय के संयुक्त सचिव (पूर्वी एशिया) ने किया था, जबकि चीनी प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व चीनी विदेश मंत्रालय के सीमा और महासागरीय विभाग के महानिदेशक ने किया था।
दोनों पक्षों ने 17 जून को दोनों विदेश मंत्रियों के बीच बनी सहमतियों और साथ ही पांच जुलाई को दो विशेष प्रतिनिधियों के बीच टेलीफोन वार्ता के दौरान बनी सहमतियों को दोहराया, और इस बात पर जोर दिया कि दोनों पक्ष वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) से अपने सैनिकों को पूरी तरह से पीछे हटाना सुनिश्चित करेंगे।
उन्होंने इस बिंदु पर भी सहमति व्यक्त की कि द्विपक्षीय संबंधों के समग्र विकास के लिए सीमावर्ती क्षेत्रों में स्थायी शांति बनाए रखना आवश्यक है।
उल्लेखनीय है कि गलवान घाटी में 15 जून को चीनी सैनिकों के साथ हुए संघर्ष में 20 भारतीय जवान शहीद हो गए थे और अज्ञात संख्या में चीनी सैनिक भी मारे गए थे।