सुप्रीम कोर्ट की पांच न्यायधीशों वाली एक संविधान पीठ ने सोमवार को कहा कि इसे सामान्य नियम के रूप में नहीं लिया जा सकता कि नारकोटिक्स ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सबस्टेंस एक्ट (एनडीपीएस अधिनियम) के तहत एक अभियुक्त केवल इसलिए बरी किए जाने का हकदार है, क्योंकि शिकायतकर्ता और जांच अधिकारी एक ही व्यक्ति है। अदालत ने माना कि केवल इसलिए कि मुखबिर और जांच अधिकारी एक ही व्यक्ति हो तो यह नहीं कहा जा सकता कि जांच पक्षपातपूर्ण है और मुकदमा भंग हो गया है।
न्यायाधीश अरुण मिश्रा, इंदिरा बनर्जी, विनीत सरन, एम.आर. शाह और एस. रवींद्र भट की सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने सोमवार को उस मामले में फैसला सुनाया, जिसमें ये तय करना था कि नारकोटिक्स ड्रग्स और साइकोट्रोपिक पदार्थ अधिनियम के तहत जांच अधिकारी और शिकायतकर्ता यदि एक ही व्यक्ति है, तो क्या मुकदमा भंग हो जाएगा।
पीठ ने इस बात पर भी जोर दिया कि यह ऐसा नियम नहीं हो सकता, जो सभी पर लागू हो, बल्कि इसके बजाय ऐसे मामलों को केस-टू-केस (हर मामले की अलग परिस्थिति) के आधार पर तय करना होगा।
साल 2018 में शीर्ष अदालत की तीन न्यायाधीशों वाली पीठ ने माना था कि यह जरूरी है कि सूचनाकर्ता और जांचकर्ता को एक ही व्यक्ति नहीं होना चाहिए। इस निर्णय पर मुकेश सिंह बनाम राज्य (दिल्ली की नारकोटिक्स शाखा) के मामले में अपनी असहमति व्यक्त की थी। इसके बाद इस मामले को विचार के लिए संविधान पीठ के समक्ष रखा गया।