तेलंगाना सरकार ने आगामी रबी सीजन के लिए रायथु बंधु योजना के तहत अब तक राज्य के 62.99 लाख किसानों के बैंक खातों में 7,411.52 करोड़ रुपये जमा किए हैं।
कृषि मंत्री एस. निरंजन रेड्डी ने कहा कि राज्य की प्रमुख योजना के तहत निवेश सहायता राज्य भर में 1,48,23,000 एकड़ को कवर करेगी।
जिलों में नलगोंडा को सर्वाधिक 601.74 करोड़ रुपये की सहायता मिली, जिससे 4,69,696 किसान लाभान्वित हुए।
हैदराबाद से सटे मेडचल मलकाजगिरी जिले को सबसे कम 33.65 करोड़ रुपये की सहायता मिली। यहां 33,452 किसानों के खातों में राशि जमा कराई गई।
रायथु बंधु के तहत, सरकार हर फसल के मौसम की शुरूआत से पहले किसानों के बैंक खातों में 5,000 रुपये प्रति एकड़ जमा करती है।
रबी सीजन के लिए वितरण लक्ष्य 7,646 करोड़ रुपये है। अधिकारियों ने दिसंबर के अंतिम सप्ताह में किसानों के खातों में राशि जमा करना शुरू किया।
जब यह योजना 2018 में शुरू की गई थी, तब राज्य सरकार प्रति वर्ष 8,000 रुपये प्रति एकड़ (रबी और खरीफ दोनों मौसमों के लिए) प्रदान कर रही थी। 2019 से इस राशि को बढ़ाकर 10,000 रुपये कर दिया गया था।
10 जनवरी को, योजना के तहत प्रदान की गई संचयी सहायता 50,000 करोड़ रुपये के आंकड़े को छू गई।
निरंजन रेड्डी ने कहा कि मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव के दिमाग की उपज रायथू बंधु किसानों के लिए वरदान साबित हो रहा है और इसने राज्य में कृषि को बदलने में मदद की है। उन्होंने दावा किया कि देश में कोई अन्य राज्य किसानों के कल्याण के लिए ऐसी योजना लागू नहीं कर रहा है।
उन्होंने मांग की कि केंद्र सरकार किसानों के कल्याण के लिए एक राष्ट्रीय नीति की घोषणा करे।
यह कहते हुए कि कृषि मजदूरों की कमी के कारण किसानों को बहुत सारी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, निरंजन रेड्डी ने इस मांग को दोहराया कि केंद्र सरकार को राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना को कृषि क्षेत्र से जोड़ना चाहिए।
उन्होंने कहा कि राज्य सरकारों को अपने-अपने क्षेत्रों में फसल की खेती और अन्य कारकों को ध्यान में रखते हुए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) तय करना चाहिए और केंद्र को पूरी उपज एमएसपी पर खरीदनी चाहिए।
उन्होंने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि केंद्र एमएसपी घोषित करने के अलावा कुछ नहीं कर रहा है और केंद्र सरकार से स्वामीनाथन समिति की सिफारिशों को लागू करने की मांग की।
उन्होंने कहा, केंद्र को कृषि के प्रति अपने ²ष्टिकोण में बदलाव लाना चाहिए, क्योंकि देश की 60 फीसदी आबादी इस क्षेत्र पर निर्भर है।