कोरोना के घटते-बढ़ते मामलों के परिणामस्वरूप भारत के इतिहास में सबसे लंबे समय तक स्कूल बंद रहे हैं। इस संकट से अब कई छात्र इससे उबर नहीं पा रहे हैं। छात्रों पर की गई हालिया रिपोर्टस बता रहीं हैं कि इसका सीधा और गंभीर असर उनके सीखने की क्षमता एवं मानसिक स्वास्थ्य पर दिखने लगा है। एक रिपोर्ट के मुताबिक गांवों में 8 फीसद बच्चों की ही पहुंच ऑनलाइन पढ़ाई तक है जबकि कई स्थानों पर 37 फीसदी तक छात्र पढ़ाई छोड़ चुके हैं।
दरअसल बार-बार स्कूल बंद किए जाने की प्रक्रिया में लाखों छात्र ड्रॉप आउट हो चुके हैं। अब तक लाखों बच्चे स्कूली पढ़ाई से हाथ धो चुके हैं क्योंकि ऑनलाइन शिक्षा के लिए उचित बुनियादी सुविधाएं और संसाधन उनकी पहुंच से परे हैं।
इस अभूतपूर्व संकट के सामाजिक-आर्थिक दुष्परिणामों को बारीकी से देखने वाले प्रख्यात अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज ने कई शोधकतार्ओं के सहयोग से स्कूली बच्चों की ऑनलाइन और ऑफलाइन पढ़ाई (स्कूल) पर एक गहन अध्ययन किया जिसका शीर्षक स्कूल शिक्षा पर आपातकालीन रिपोर्ट है। इसका यह निष्कर्ष है कि ग्रामीण भारत के केवल 8 फीसद स्कूली बच्चों को ऑनलाइन पढ़ाई की सुविधा है जबकि कम से कम 37 फीसद पूरी तरह से पढ़ाई छोड़ चुके हैं।
अजीम प्रेमजी युनिवसीर्टी ने पांच राज्यों में किए गए एक शोध में विद्यार्थियों के सीखने की क्षमता कम होने के प्रत्यक्ष प्रमाण प्राप्त किए हैं। शोध से यह भी सामने आया है कि बच्चों के बुनियादी ज्ञान कौशल जैसे पढ़ने, समझने, या गणित के आसान सवाल हल करने में भी वे पिछड़ रहे हैं जोकि चिंताजनक है।
कुछ महीने पहले कोविड पॉजिटिव दर में कमी देख कर कई राज्यों ने स्कूल खोल कर कक्षा में पढ़ने-पढ़ाने की अनुमति दी थी। लेकिन ओमीक्रोन के बढ़ते मामलों ने फिर संस्थानों को बंद करने पर लाचार कर दिया। हालांकि अब शिक्षा जगत के विशेषज्ञ और देश के प्रमुख शिक्षाविद बताते हैं कि बार-बार और अचानक स्कूल बंद करना विद्यार्थियों के भविष्य से खिलवाड़ साबित हो सकता है।
स्कूल फिर से खोलने के तर्क में हेरिटेज ग्रुप ऑफ स्कूल्स के निदेशक विष्णु कार्तिक ने कहा, “स्कूलों का बार-बार बंद होना, और रुक-रुक कर खुलना विद्यार्थियों और शिक्षकों के लिए काफी उथल-पुथल भरा अनुभव रहा है। इससे न केवल बच्चों का तनाव और दुविधा बढ़ी है बल्कि उनका सामाजिक-भावनात्मक पक्ष भी बुरी तरह प्रभावित हुआ है। हमें महसूस होता है कि अन्य बहुत-से देशों की तरह हमें भी इस दौर में स्कूल खुले रखने चाहिए। कोविड काल के सबसे बड़े उथल-पुथल में एक स्कूलों और शिक्षा संस्थानों का लंबे समय तक बंद रहना है। टीकाकरण की उम्र भी कम करना होगा ताकि विद्यार्थी फिर से पढ़ने के लिए वास्तविक स्कूल आएं।”
ऑनलाइन शिक्षा के इस दौर में ऐसे छात्रों की भी कमी नहीं है जो इंटरनेट जैसी सुविधा से वंचित हैं। जाहिर है, उनकी पढ़ाई का सिलसिला थम गया जिसका उनके समग्र विकास पर भी असर पड़ा।
विभिन्न शोधों के निष्कर्ष बताते हैं कि कोविड-19 के दौर में स्कूल बंद होने से बच्चों के सीखने की क्षमता कम हुई है जबकि उनका तनाव बढ़ा है और आपसी लगाव कम हुआ है। कुछ वैश्विक शोध बताते हैं कि विद्यार्थियों में चिंता और निराशा के साथ-साथ अकेलापन और मानसिक समस्याएं सामने आई हैं। इसलिए आज महामारी से निपटने के तरीकों पर फिर से विचार करना बहुत प्रासंगिक है। कई विश्व स्तरीय विशेषज्ञ फिर से स्कूल खोलने के पक्ष में हैं और पूरा बंद करने के बजाय सुरक्षा के उपाय सख्ती से लागू करने का सुझाव देते हैं। वहीं पॉजिटिवीटी दर बढ़ने की स्थिति में सरकार के पास स्कूल बंद करने का विकल्प तो है ही।
इस मसले पर पाथवेज स्कूल के निदेशक कैप्टन रोहित सेन बजाज ने कहा, ”यह कहना आसान है कि वर्चुअल-हाइब्रिड-वर्चुअल का सिलसिला ‘नार्म बन गया है लेकिन यह परिवर्तन आसान नहीं है। स्कूल की कक्षाओं और गलियारों में बच्चों के आपसी लगाव से जो शैक्षिक और सामाजिक-भावनात्मक कौशल विकास होता है वह वर्चुअल क्लास में मुमकिन नहीं है। पहली लहर के शुरू में बच्चों की पढ़ाई से अधिक उन्हें सुरक्षित रखने की भावना प्रबल थी। लेकिन विश्वविद्यालय में आवेदन का समय आया तो ग्रेड समय की मांग बन गई है। फिर अब तो बच्चे पहले से कहीं अधिक अंदर से मजबूत हैं जो उन्हें याद दिलाना होगा। आज ओमीक्रोन के चंगुल में फंसते लोगों की खबरें सुनते हुए हेलेन केलर के ये शब्द मेरे कानों में गूंजते हैं, संसार में सर्वत्र दुख है, लेकिन दुख-दर्द दूर करने के उपाय भी है। ”
फिक्की अराइज के सह-अध्यक्ष और सुचित्रा अकादमी के संस्थापक प्रवीण राजू भी स्कूल फिर से खोलने के पक्षधर हैं। उन्होंने कहा, ”लंबे समय तक स्कूल बंद रहने से विद्यार्थियों की सामान्य शिक्षा बुरी तरह प्रभावित हुई है और साधन सम्पन्न एवं साधनहीन विद्यार्थियों के बीच का अंतर और बढ़ गया है। आप भी भारतीय शिक्षा की वस्तुस्थिति की कल्पना कर सकते हैं जिसमें अधिकांश विद्यार्थियों के पास डिजिटल डिवाइस तक नहीं हैं और इसलिए ऑनलाइन शिक्षा जारी रखना कठिन है। भारत सबसे लंबे समय तक स्कूल बंद करने वाले देशों में शुमार है और अब तो विश्व बैंक, यूनेस्को, देश-विदेश के विशेषज्ञ सभी स्कूल बंद रखने के दीर्घकालीन दुष्प्रभावों के खिलाफ चेतावनी दे रहे हैं। किसी मनोचिकित्सक, मनोवैज्ञानिक से बात कर आप खुद दुष्परिमाण का अंदाजा लगा सकते हैं।”
शिक्षाविदों का कहना है कि इस संकट में सभी संबद्ध भागीदारों को सुरक्षा के उपाय मजबूत करने होंगे और खास कर जिन राज्यों में पॉजिटिवीटी रेट कम है उनमें स्कूलों को अब और बंद नहीं रखने पर फिर से विचार करना होगा।