केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ ने कहा कि यूजीसी ने विश्वविद्यालय की परीक्षाओं से संबंधित अपने पहले के दिशानिर्देशों में परिवर्तन किया है। छात्रों की सुरक्षा, भविष्य, उन्नति और प्लेसमेंट के मद्देनजर गृह मंत्रालय एवं स्वास्थ्य मंत्रालय के परामर्श से ये परिवर्तन किए गए हैं। मानव संसाधन विकास मंत्रालय का मानना है कि विश्वविद्यालयों के छात्रों का परीक्षाओं में प्रदर्शन उन्हें सर्वश्रेष्ठ उच्च शिक्षण संस्थानों में प्रवेश दिलाने में, छात्रवृत्ति और पुरस्कार उपलब्ध कराने में और बेहतर नौकरी मिलने में सहायक होता है। इसलिए यूजीसी और मंत्रालय ने परीक्षाओं को रद्द करने की मांग खारिज कर दी।
विश्वविद्यालयों में परीक्षाओं की जरूरत पर केंद्रीय मंत्री निशंक ने कहा, “परीक्षाओं में बेहतर प्रदर्शन छात्रों को अधिक आत्मविश्वास और संतुष्टि देता है और योग्यता, आजीवन विश्वसनीयता और व्यापक वैश्विक स्वीकार्यता भी सुनिश्चित करता है।”
गौरतलब है कि कई छात्र संगठनों के साथ-साथ विश्वविद्यालयों में पढ़ाने वाले अध्यापकों के संगठन भी इन परीक्षाओं का विरोध कर रहे हैं।
निशंक ने जानकारी साझा करते हुए कहा, “अंतिम वर्ष के विद्यार्थी जिनका बैकलॉग है, उनका अनिवार्य रूप से संभाव्यता और उपयुक्तता को ध्यान में रखते हुए पेन और पेपर से ऑफलाइन या ऑनलाइन मिश्रित मोड में परीक्षा आयोजित कर, मूल्यांकन किया जाना चाहिए। यदि किसी कारणवश अंतिम वर्ष का कोई विद्यार्थी विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित परीक्षा में उपस्थित नहीं हो पाता है, तो उसे इस तरह के पेपर के लिए विशेष परीक्षाओं में उपस्थित होने का अवसर दिया जा सकता है।”
यूजीसी ने अपनी नई सिफारिश में कहा है कि टर्मिनल सेमेस्टर और अंतिम वर्ष के विद्यार्थियों के वैश्विक स्तर पर अकादमिक और कैरियर की प्रगति से संबंधित दूरगामी हितों की रक्षा के लिए संस्थानों को सितंबर, 2020 के अंत तक पेन और कागज से ऑफलाइन और अन्य साधनों से ऑनलाइन किया जाए। ऐसा संभव न होने पर ऑनलाइन और ऑफलाइन मिश्रित मोड में परीक्षाओं का आयोजन करना आवश्यक है।
यूजीसी के मुताबिक, जब भी संभव हो, विश्वविद्यालय द्वारा इन विशेष परीक्षाओं को संचालित किया जा सकता है, ताकि विद्यार्थी को किसी भी असुविधा या नुकसान का सामना न करना पड़े। यह प्रावधान केवल वर्तमान शैक्षणिक सत्र 2019-20 के लिए सिर्फ एक बार के उपाय के रूप में लागू होगा।