दिल्ली मेट्रो स्टेशनों के आस-पास के एक-तिहाई स्थानों से अधिक पर रिक्शा, ई-रिक्शा एवं लास्ट माइल कनेक्टिविटी मोड के वाहनों ने कब्जा जमा रखा है। इसकी वजह से मेट्रो स्टेशनों के आसपास से गुजरने वाले वाहनों की गति में लगभग छह किमी प्रति घंटा घट गई है। यह बात इस वर्ष मार्च में लॉकडाउन से पहले किए एक गए रिसर्च में सामने आई है।
दिल्ली के अधिकांश व्यस्त मेट्रो स्टेशन पिछले कुछ वर्षों में ट्रैफिक चोकपॉइंट बन गए हैं। यह स्थिति ई-रिक्शा की बढ़ती संख्या के कारण हुई है, जो यात्रियों के लिए लास्ट माइल कनेक्टिविटी के मोड बनकर उभरे हैं।
यह सर्वे पश्चिम, दक्षिण और पूर्वी दिल्ली में स्थित पांच व्यस्त मेट्रो स्टेशनों -करोल बाग, कैलाश कॉलोनी, लक्ष्मी नगर, लाजपत नगर और इंद्रलोक के पास किए गए। अध्ययन के लिए शाम सात से 10 बजे के बीच इन स्टेशनों के पास के यातायात की स्थिति का डेटा संकलित किया गया। यह शोध सीएसआईआर-सेंट्रल रोड रिसर्च इंस्टीट्यूट (सीआरआरआई) के वैज्ञानिकों की एक टीम द्वारा किया गया। अध्ययन का खर्च पेट्रोलियम संरक्षण अनुसंधान संघ (पीसीआरए) ने वहन किया।
शोध में यह भी पता चला है कि 39 प्रतिशत मेट्रो यात्री पैदल ही स्टेशनों तक पहुंचते हैं, बाकी परिवहन के अन्य साधनों का उपयोग करते हैं, जो बेहद धीमी गति से चलते हैं।
सर्वेक्षण के दौरान 39 प्रतिशत यात्रियों ने बताया कि वे पैदल ही स्टेशन तक पहुंचते हैं, जबकि 35 प्रतिशत ने कहा कि वे साइकिल रिक्शा या ई-रिक्शा से स्टेशन तक आते हैं। वहीं 14 प्रतिशत यात्री निजी कार या कैब का उपयोग करते हैं, जबकि 10 प्रतिशत बसों के माध्यम से स्टेशन आते हैं।
अध्ययन में यह बात भी सामने आई है कि फ्लाईओवर और सड़क चौड़ीकरण जैसे विकल्पों के जरिए समस्या का समाधान तो होता है, लेकिन यातायात के व्यवहार के कारण कुछ समय बाद स्थिति फिर पहले जैसी हो जाती है। शोध में यह भी पता चला है कि निजी वाहनों पर रोक या किसी अन्य तरह का प्रतिबंध लगाने से मेट्रो की सवारियों को घर तक पहुंचने से संबंधित परेशानी बढ़ सकती है। इसके साथ ही भीड़भाड़ की नई समस्या भी पैदा हो सकती है।
पीसीआरए के कार्यकारी निदेशक, डॉ. एन.के. सिंह ने कहा, इस समस्या से निपटने के लिए सभी का सहयोग वांछित है। चाहे यातायात पुलिस हो, मेट्रो की फीडर बसें हों, ई-रिक्शाचालक हों, अथवा मेट्रो में सफर करने वाली जनता हो। सभी को नियम-कानून का पालन करते हुए इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि हमारी वजह से किसी और को अनावश्यक परेशानी न हो।
पीसीआरए के अध्ययन में सिफारिश की गई है कि वैकल्पिक सिग्नल फेसिंग, साइकिल का उपयोग करने अथवा पैदल चलने से इस समस्या का समाधान प्राप्त किया जा सकता है। स्ट्रीट पार्किं ग, पैदल चलने वालों के लिए फुटपाथ आदि बनने से न केवल मेट्रो स्टेशनों के पास से गुंजरते हुए वाहनों की गति बढ़ेगी, बल्कि गाड़ियों की भीड़ के कारण होने वाले वाहन उत्सर्जन को कम करने में भी मदद मिलेगी और साथ ही ईंधन की भी बचत होगी।
अध्ययन में यह भी सिफारिश की गई है कि स्ट्रीट पार्किं ग के साथ साइकिल रिक्शा और ई-रिक्शा के लिए अलग पार्किं ग लेन, यातायात और सड़क उपयोगकर्ताओं के लिए उपयुक्त वैकल्पिक बस स्टॉप स्थल और विशेष बस स्टॉप्स को चैनलाइज किया जाए। टैक्सी, निजी वाहनों, ऑटो के लिए मेट्रो स्टेशनों के नीचे अलग-अलग पिक-अप और ड्रॉप ऑफ जोन मुहैया कराए जाएं, ताकि सड़क उपयोगकर्ताओं, मेट्रो यात्री आदि के लिए संभावित उपयोगी स्थानों की संभावनाओं को तलाशा जा सके।