अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये में गिरावट भारतीय अभिभावकों के लिए बड़ी परेशानी का सबब बन सकती है, क्योंकि इससे उनके बच्चों की पढ़ाई पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। विशेषज्ञों और अभिभावकों ने यह आशंका जताई है।
उन्होंने यह भी कहा है कि छात्र अपनी शिक्षा को आगे बढ़ाने के लिए अन्य देशों की ओर रुख कर सकते हैं, क्योंकि रुपया लगातार डॉलर के मुकाबले कमजोर हो रहा है।
हाल के दिनों में डॉलर के मुकाबले रुपये में गिरावट आई है और यह एक डॉलर के मुकाबले अब तक के सबसे निचले स्तर 80.05 को छू गया है, जो उन अभिभावकों को परेशान कर रहा है, जिनके बच्चे अमेरिका में पढ़ रहे हैं और साथ ही अमेरिकी विश्वविद्यालय की डिग्री के इच्छुक हैं।
इसके कारण पर बात करें तो अभिभावकों को एक डॉलर खरीदने के लिए अधिक रुपये देने पड़ते हैं और अमेरिका में पढ़ने वाले उनके बच्चों को भी आर्थिक बजट बनाने को लेकर अपनी कमर कसनी पड़ रही है।
एक सेवानिवृत्त बैंकर वी. रेवती ने आईएएनएस को बताया, “हमारी बेटी ने यूएस में पढ़ाई के दौरान अपने खर्च को सीमित किया है, क्योंकि हमने डॉलर खरीदे और उसे भेजे हैं। उसके अध्ययन के दौरान भी डॉलर की कीमत में इजाफा हुआ है।”
फंड्सइंडिया के शोध प्रमुख अरुण कुमार ने कहा, “अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपये के कमजोर होने के प्रमुख कारण वैश्विक कारक हैं, जिनमें रूस-यूक्रेन युद्ध, कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें, वैश्विक लिक्विडिटी और महत्वपूर्ण एफआईआई बहिर्वाह (आउटफ्लो) शामिल हैं।”
रुपये के मुकाबले डॉलर के मजबूत होने के प्रभाव हैं: आयात, विदेश यात्रा, अमेरिका में शिक्षा और अन्य चीजें महंगी हो रही हैं।
हालांकि ऐसी परिस्थिति में छात्र अध्ययन के लिए अन्य गंतव्यों पर भी विचार कर सकते हैं, मगर अमेरिका के विपरीत उन देशों में नौकरी पाने को लेकर समस्याएं हैं।
न केवल माता-पिता, जिनके बच्चे अमेरिका में पढ़ रहे हैं, वे चिंतित हैं, बल्कि उन बच्चों के माता-पिता भी चिंतिंत हैं, जिन्हें कोई रोजगार मिला है और वहां रहने के लिए एक प्रासंगिक वीजा की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
निजी क्षेत्र के एक कर्मचारी वी. राजगोपालन ने आईएएनएस को बताया, “मेरी बेटी ने अपनी शिक्षा पूरी कर ली है और वह जॉब ट्रेनिंग पर है। उसने डॉलर में शिक्षा ऋण लिया है और उसे वापस कर रही है। अब चिंता यह है कि अगर उसे अमेरिका में रहने के लिए आवश्यक वीजा नहीं मिलता है, तो उसे वापस आना होगा। तब ऋण चुकौती एक मुद्दा होगा।”
भारतीय छात्र, जिन्होंने अमेरिका में अपनी शिक्षा पूरी की है और वहां नौकरी भी शुरू कर दी है, वे अब खुश हैं, क्योंकि जो डॉलर वे घर वापस भेजते हैं उससे रुपये के तौर पर बदलने से उन्हें अधिक पैसे मिल रहे हैं।
वहीं वित्तीय विशेषज्ञों का मानना है कि रुपये के अस्थायी झटके से छात्रों की विदेश में पढ़ने की योजना पूरी तरह से प्रभावित नहीं होनी चाहिए।
यह भी ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि छात्र कई वर्षों से विदेश में अपने अध्ययन की गतिविधियों की योजना बना रहे हैं। यह एक सुविचारित निर्णय है और इसके जल्दी बदलने की संभावना नहीं है।
वैश्विक सेवा प्रदाता और अंतरराष्ट्रीय शिक्षा मंच एम. स्क्वायर मीडिया के संस्थापक एवं सीईओ संजय लौल ने कहा, “रुपये का गिरना एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना है, लेकिन मुद्राओं के मूल्य में उतार-चढ़ाव अस्थायी विनिमय दरों का स्वाभाविक परिणाम है, जो कि अधिकांश प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के लिए सही है।”
उन्होंने कहा, “इसे स्थायी स्थिति नहीं माना जाना चाहिए और छात्रों को शिक्षा जैसी अपने जीवन के महत्वपूर्ण घटनाक्रम के संबंध में स्थायी निर्णय लेने से बचना चाहिए।”
उनके अनुसार, अमेरिका में अंतरराष्ट्रीय शिक्षा खर्च में अपेक्षित वृद्धि के बावजूद, छात्रों के लिए कई लाभों के कारण देश एक अत्यधिक आकर्षक अंतरराष्ट्रीय शिक्षा गंतव्य बना हुआ है, जिनमें से एक शिक्षा की गुणवत्ता है, जो उन्हें मिलेगी।
जहां रुपये का मूल्यह्रास विदेशी यात्रा को महंगा बना देता है, ऐसा लगता है कि बाजार में मांग में कमी है।
हॉलिडे, एमआईसीई, वीजा – थॉमस कुक (इंडिया) लिमिटेड के अध्यक्ष और कंट्री हेड राजीव काले ने आईएएनएस से कहा, “रुपये की गति कोई नई घटना नहीं है और अमेरिकी डॉलर के मुकाबले मूल्यह्रास के बावजूद, इस साल मजबूत मांग के साथ भारतीयों के लिए यात्रा स्पष्ट रूप से गैर-परक्राम्य (नॉन नेगोशियेबल) है। यूरो और पाउंड की तुलना में रुपये में वास्तव में वृद्धि देखी गई है।”
हॉलिडेज, एसओटीसी ट्रैवल के प्रेसिडेंट और कंट्री हेड डेनियल डिसूजा ने आईएएनएस को बताया, “दो साल के प्रतिबंधों के बाद, मांग बढ़ने से यात्रा की इच्छा बढ़ रही है और डॉलर का मूल्य बढ़ने के बावजूद, भारतीय यात्रियों की यात्रा पर कोई असर नहीं पड़ रहा है।”
भारतीय स्मार्ट यात्री हैं और उनके यात्रा बजट के प्रबंधन में कई चीजें होती हैं, जिन्हें वह अच्छे से संतुलित रखना जानते हैं। उदाहरण के तौर पर कहें तो खरीदारी और भोजन पर खर्च को कम करके वे यात्रा करने वाली जगह के अनुभव/दर्शनीय स्थलों का भ्रमण करने पर जोर देते हैं।
काले ने कहा कि इसके अलावा, ग्राहक उन गंतव्यों में बदलाव के लिए भी अपने विकल्प खुले रखते हैं, जो बटुए पर अधिक भार नहीं डालते हैं, जिनमें वियतनाम, इंडोनेशिया और कंबोडिया जैसे देश शामिल हैं।
इस बारे में बात करते हुए डिसूजा ने कहा कि हमारे घर के करीब, जैसे थाईलैंड, सिंगापुर, बाली, यूएई जैसे आसान वीजा गंतव्यों के लिए एक निश्चित वृद्धि देखी जा रही है और मालदीव और मॉरीशस जैसे द्वीप-स्थल भी महीने-दर-महीने 30-35 प्रतिशत की मांग के साथ लोगों की लिस्ट में बने हुए हैं।
डिसूजा ने कहा, “हमारे आंतरिक डेटा से पता चलता है कि ग्राहक अपनी लंबी अवधि की छुट्टी लेने के इच्छुक हैं, लेकिन वे मूल्य बचत विकल्पों का चयन कर रहे हैं, ताकि डॉलर के बढ़ते मूल्य के कारण पड़ने वाले प्रभाव को कम किया जा सके।”
उदाहरण के लिए, ग्राहक अतिरिक्त खचरें को बचाने के लिए अपार्टमेंट में ठहरने और सभी इन्क्लूसिव यात्रा पास का चयन कर रहे हैं। इसके साथ ही डिसूजा ने कहा कि वे खरीदारी या खाने के खर्च में भी कटौती कर सकते हैं।
रुपये में उतार-चढ़ाव भारत में भी छुट्टियों की मांग को बढ़ा रहा है और घरेलू क्रूज जैसे शानदार विकल्पों पर भी लोग नजर बनाए हुए हैं, जो सभी तरह के प्राइस टैग के साथ शानदार ऑफर पेश करते हैं और सबसे बड़ी बात यह है कि यह बाहरी देशों की तुलना में जेब पर भी उतना भारी नहीं पड़ेगा।
काले के अनुसार, कश्मीर, लेह-लद्दाख, गोवा, केरल, पांडिचेरी, कूर्ग, ऊटी और मुन्नार जैसे इलाकों में पयर्टन के लिहाज से अधिक मांग देखी जा रही है।