राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा कि हमारी नई पीढ़ी को मंदिरों के द्वारा शिक्षा संस्कार देनी पड़ेगी, क्योंकि भविष्य उन्हीं को संभालना है। इनको अभी से प्रशिक्षित करने की जरुरत है।
संघ प्रमुख मोहन भागवत शनिवार को वाराणसी में टेंपल कनेक्ट की ओर से आयोजित मंदिरों के महासम्मेलन को संबोधित कर रहे थे। इस दौरान उन्होंने कहा कि मंदिर को नई पीढ़ी को संभालना है तो उन्हें ट्रेनिंग दें। अपने साधन और संसाधन को एक करके अपनी कला और कारीगरी को सशक्त करें। समाज के कारीगर को प्रोत्साहन मिले तो वह अपने को मजबूत करेगा। मंदिर सत्यम-शिवम-सुंदरम की प्रेरणा देते हैं। मंदिर की कारीगरी हमारी पद्धति को दिखाते हैं। मंदिर को चलाने वाले धर्म होने चाहिए। अपने यहां कुछ मंदिर सरकार और कुछ समाज के हाथ में है। काशी विश्वनाथ का स्वरूप बदला, ये भक्ति की शक्ति है। परिवर्तन करने वाले लोग भक्त हैं और इसके लिए भाव चाहिए।
भागवत ने कहा कि छोटे से छोटे मंदिर में पूजा हो और वहां पर स्वच्छता की व्यवस्था हो, उसकी चिंता होनी चाहिए। कई जगहों पर मंदिर सरकार के नियंत्रण में हैं, उनको कैसे जोड़ा जाए, उस पर भी सोचना चाहिए। मंदिर कनेक्ट तो हो रहा है, अब अगला कार्यक्रम सभी मंदिरों का सर्वे करना है। जिस धर्म का पालन करना है, अगर वो धर्म ही नहीं रहेगा और उसकी श्रद्धा ही नहीं रहेगी तो कैसे काम चलेगा।
उन्होंने कहा कि समाज में धर्म चक्र परिवर्तन के आधार पर सृष्टि चलती है। शरीर, मन और बुद्धि को पवित्र करके ही आराधना होती है। मंदिर हमारी प्रगति का सामाजिक उपकरण हैं। मंदिर में आराधना के समय आराध्य का पूर्ण स्वरूप होना चाहिए। शिव के मंदिर में भस्म और विष्णु के मंदिर में चंदन मिलता है।
संघ प्रमुख ने कहा कि बलि और हिंसा समय के साथ बदली और यह अब नारियल फोड़कर होती है। समाज प्रकृति और परंपरागत राजा पर निर्भर नहीं है। राजा का काम संचालन है। इसके लिए हम सत्ता देकर सो नहीं जाते, बल्कि उनके कामों का फल चुनाव में देते हैं।
उन्होंने कहा कि मंदिर भक्तों के आधार पर चलते हैं। पहले मंदिर में गुरुकुल चलते थे। कथा प्रवचन और पुराण से नई पीढ़ी शिक्षित होती थी। संस्कार होता है कि मनुष्य को जहां धन, वैभव आदि मिलता है, वह वहां आता है।