भारत दुनिया में दाल का सबसे बड़ा उत्पादक है, फिर भी खपत की जरूरत की पूर्ति के लिए आयात पर निर्भर करना पड़ता है, जबकि देश के किसानों ने यह साबित कर दिखाया है कि दलहनों के मामले में भारत आत्मनिर्भर बन सकता है। इसलिए, विशेषज्ञ कहते हैं कि दाल आयात की संभावना तलाशने के बजाय उत्पादन बढ़ाने के लिए किसानों को प्रोत्साहन देने की जरूरत है।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईएएनएस) के तहत आने वाले कानपुर स्थित भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. जी.पी. दीक्षित कहते हैं कि भारत दलहन के मामले में आत्मनिर्भर बन सकता है, यह बात देश के किसानों ने साबित कर दिखाया है इसलिए दलहनी फसलों की खेती बढ़ाने के लिए किसानों को प्रोत्साहित करने की जरूरत है।
दीक्षित ने आईएएनएस से बातचीत में कहा कि गेहूं और धान की खरीद जिस तरह न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर व्यापक पैमाने पर होती है, उसी तरह की व्यवस्था देशभर में दलहनों के लिए हो तो किसानों का भरोसा बढ़ेगा।
उन्होंने कहा कि आयात ज्यादा होगा तो किसानों का भाव नहीं मिलेगा और वे निरुत्साहित होंगे। दीक्षित ने कहा कि देश में क्वालिटी सीड विकसित किए गए हैं और माइक्रो इरिगेशन को बढ़ावा देने से आने वाले दिनों में देश में दलहन की पैदावार 30-40 फीसदी बढ़ सकती है।
उन्होंने कहा, “पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अगर हाइब्रिड अरहर की खेती को बढ़ावा दिया जाए तोएक बड़े क्षेत्र में इसकी खेती हो सकती है।”
दाल की महंगाई को काबू करने के लिए सरकार ने बफर स्टॉक में पड़े दलहन खुले बाजार में उतारने के साथ-साथ तय कोटे के तहत तुअर और उड़द आयात करने की इजाजत दी है। वहीं, मोजांबिक से तुअर आयात के अनुबंध को अगले पांच साल के लिए बढ़ाने का फैसला लिया गया है जबकि उड़द आयात के लिए म्यांमार से समझौता करने पर विचार किया जा रहा है।
भारत दुनिया का सबसे बड़ा दलहन उत्पादक होने के साथ-साथ दालों का सबसे बड़ा उपभोक्ता भी है, और खपत के मुकाबले घरेलू उत्पादन कम होने के कारण आयात करने की जरूरत होती है।
ऑल इंडिया दाल मिल एसोसिएशन के अध्यक्ष सुरेश अग्रवाल ने बताया कि देश में दलहनों की सालाना खपत करीब 240-250 लाख टन है। केंद्र सरकार के आंकड़ों के अनुसार, फसल वर्ष 2017-18 (जुलाई-जून) में दलहनों का कुल उत्पादन 254.2 लाख टन था। इस प्रकार, खपत के मुकाबले उत्पादन ज्यादा था, लेकिन उसके बाद 2018-19 में देश में दलहनों का उत्पदन 220.08 लाख टन और 2019-20 में 231.5 लाख टन रहा।
उत्पादन में आई कमी की एक वजह यह बताई जा रही है कि बारिश ज्यादा होने से फसल खराब हुई, मगर दलहन बाजार विशेषज्ञ अमित शुक्ला कहते हैं कि किसानों को दलहनी फसलों का अच्छा उचित भाव नहीं मिला, जिसके चलते इसकी खेती के प्रति उनकी दिलचस्पी घट गई।
शुक्ला ने कहा कि अगर किसानों को विगत वर्षों में दलहनों का अच्छा भाव मिलता तो आज आयात की जरूरत नहीं होती।
सुरेश अग्रवाल ने भी कहा कि किसानों को अगर दलहनों का एमएसपी मिले तो इसकी खेती में उनकी दिलचस्पी बढ़ेगी जो एक स्थायी समाधान होगा और भारत दाल के मामले में आत्मनिर्भर बनेगा।
केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा जारी फसल वर्ष 2020-21 के प्रथम अग्रिम उत्पादन अनुमान के अनुसार, चालू खरीफ सीजन में दलहनों का उत्पादन 93.1 लाख टन होने का आकलन किया गया। प्रमुख दलहन उत्पादक राज्यों मंे उड़द और मूंग की नई फसल की आवक एक महीने से समय से हो रही है और आने वाले दिनों अरहर की नई फसल भी बाजार में आने वाली है।
वहीं, रबी सीजन की दलहनी फसल चना और मसूर की बुवाई शुरू हो चुकी है।