कोविड-19 के कारण अश्वेत और अन्य अल्पसंख्यक समुदायों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। यही नहीं इस समुदाय पर एक प्रतिकूल वित्तीय प्रभाव भी देखने को मिला है, जिससे मौजूदा आर्थिक असमानताएं और भी बढ़ गई हैं। महामारी से पहले भी अश्वेत और अन्य जातीय लोगों में अपने श्वेत (गोरे) सहयोगियों की तुलना में काम से बाहर होने या कम कमाने की अधिक संभावना देखी गई है।
अश्वेत, एशियाई और अल्पसंख्यक जातीय (बीएएमई) समुदाय की आय का न होना, बिल भरने को लेकर समस्या और अन्य बुनियादी जरूरतों को लेकर दिक्कतें सामने आने की संभावना अधिक है। यह बात संकल्प फाउंडेशन द्वारा किए गए विश्लेषण में सामने आई है।
संकल्प फाउंडेशन एक स्वतंत्र ब्रिटिश थिंक-टैंक है, जिसका लक्ष्य निम्न और मध्यम-आय वाले परिवारों के जीवन स्तर में सुधार लाना है। फाउंडेशन के विश्लेषण में पता चला है कि अश्वेत अफ्रीकी कामगार अब भी श्वेत अंग्रेजों की तुलना में एक वर्ष में लगभग 10,000 पाउंड कम कमाते हैं।
अश्वेत कैरीबियाई समुदाय एक साल में लगभग 7,000 पाउंड कम प्राप्त कर रहे हैं। एक ही व्यवसाय में और समान योग्यता वाले अश्वेत पुरुष अब भी अपने श्वेत पुरुष समकक्षों की तुलना में 15 से 19 प्रतिशत कम कमा रहे हैं।
ऑफिस ऑफ नेशनल स्टैटिस्टिक्स के आंकड़े बताते हैं कि अगर श्वेत समुदाय के घरों में एक पाउंड है, तो इसकी तुलना में अश्वेत अफ्रीकी के घरों में 10 पेंस (एक पाउंड का 10 प्रतिशत) और अश्वेत कैरीबियाई समुदाय के पास 20पेंस (एक पाउंड का 20 प्रतिशत) ही है।
औसत श्वेत ब्रिटिश परिवार के पास संपत्ति सहित लगभग 282,000 पाउंड हैं। वहीं अश्वेत अफ्रीकी परिवारों के पास इसका लगभग दसवां हिस्सा, औसतन 23,800 पाउंड ही है।
सरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि पांच अश्वेत अफ्रीकी परिवारों में से केवल एक के पास अपना घर है, जबकि दो तिहाई ब्रिटिश नागरिकों के पास अपना खुद का एक घर है।
एक चैरिटी द रननमेड ट्रस्ट द्वारा किए गए एक शोध से पता चलता है कि बीएएमई समुदाय पर मंदी के कारण आर्थिक मार कहीं अधिक पड़ी है।
जब अर्थव्यवस्था का विस्तार होता है, तब इस समूह के बीच रोजगार श्वेत लोगों की तुलना में तेजी से बढ़ता है, लेकिन संकट के समय में इस समुदाय के लोगों में रोजगार दर तेजी से गिरती है।
विशेष रूप से 2008 के वित्तीय संकट के दौरान अश्वेत पुरुषों में सबसे ज्यादा रोजगार को लेकर संकट देखने को मिला था।
दुनिया के सबसे बड़े पैनल सर्वेक्षणों में से एक अंडरस्टैंडिंग सोसाइटी की एक रिपोर्ट में पता चला है कि कोरोनावायरस के कारण पैदा हुए संकट के समय पर अश्वेत लोगों को श्वेत की तुलना में अपने बिलों का भुगतान करने में अधिक परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।
कुल 13 प्रतिशत बीएएमई परिवारों ने यूनिवर्सल बेनिफिट के लिए आवेदन किया है और 16 प्रतिशत ने कर्ज लिया है। यह संख्या गैर-बीएएमई परिवारों की तुलना में दोगुनी है। यही नहीं बीएएमई परिवारों में उधार लेने की संभावना भी अधिक देखी गई है।
सरकारी आंकड़े बताते हैं कि बीएएमई घरों के बच्चों को उनके श्वेत समकक्षों की तुलना में गरीबी में रहने की अधिक संभावना है।